किसान आंदोलन के लिए केंद्र पर फिर बरसे राज्यपाल Satya Pal Malik, बोले- सत्ता बदलने के लिए किसानों को होना होगा एकजुट

जींद: मेघालय के राज्यपाल सत्यपाल मलिक ने कथित किसान आंदोलनकारियों की ओर से पिछले वर्ष लाल कीले पर “निशान साहिब” फहराए जाने को सही ठहराते हुए कहा कि इसमें कुछ भी ग़लत नहीं था। किसान आंदोलन के लिए एक बार फिर केंद्र सरकार और उसके नेताओं की तीखी आलोचना करते हुए मलिक ने किसानों का […]

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March 7, 2022

National

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जींद: मेघालय के राज्यपाल सत्यपाल मलिक ने कथित किसान आंदोलनकारियों की ओर से पिछले वर्ष लाल कीले पर “निशान साहिब” फहराए जाने को सही ठहराते हुए कहा कि इसमें कुछ भी ग़लत नहीं था। किसान आंदोलन के लिए एक बार फिर केंद्र सरकार और उसके नेताओं की तीखी आलोचना करते हुए मलिक ने किसानों का आह्वान किया कि वे सत्ता बदलने और किसानों की सरकार बनाने के लिए एकजुट हों। उन्होंने कहा कि वह राज्यपाल के पद पर उनका कार्यकाल समाप्त होने के बाद खुद देशभर का दौरा कर, किसानों को एकजुट करेंगे। मलिक का कहना था कि (सरकार ने) किसानों से आधा-अधूरा समझौता कर उन्हें (धरने से) उठा दिया गया, लेकिन मामला जस का तस है। 


राज्यपाल ने आरोप लगाया प्रधानमंत्री के एक दोस्त पानीपत में 50 एकड़ क्षेत्र में गोदाम बनाकर सस्ते भाव में गेहूं खरीदने का सपना पाले हुए हैं। मेघालय के राज्यपाल सत्यपाल मलिक रविवार को यहां गांव कंडेला में आयोजित कंडेला खाप एवं माजरा खाप द्वारा आयोजित किसान सम्मान समारोह को संबोधित कर रहे थे। मलिक ने यह भी खुलासा किया कि उनके कुछ मित्रों ने सलाह दी थी कि वह उपराष्ट्रपति या राष्ट्रपति बन सकते हैं इसलिए उन्हें चुप रहना चाहिए। लेकिन, मलिक के अनुसार, ह्लमैंने उन्हें कहा कि मैं इन पदों की परवाह नहीं करता।ह्व उन्होंने यह भी कहा कि उनके लिए राज्यपाल का पद महत्वपूर्ण नहीं है।

उन्होंने किसानों का आह्वान किया कि वे सत्ता बदलने के लिए एकजुट हों और दिल्ली में स्वयं की सरकार बनाएं ताकि उन्हें किसी से कुछ न मांगना पड़े बल्कि लोग उनसे मांगे। मलिक ने क्षोभ व्यक्त करते हुए कहा कि कहा कि प्रधानमंत्री का आवास (किसानों के धरना स्थल से) मात्र दस किलोमीटर दूर था, और एक साल से अधिक समय तक चले उनके आंदोलन के दौरान बड़ी संख्या में किसानों की जान गई। मलिक ने कहा कि लेकिन सरकार की तरफ से कोई संवेदना प्रकट करने नहीं आया। उन्होंने कहा कि उन्होंने कभी उसूलों से समझौता नहीं किया और अपने पद की परवाह किए बगैर किसानों की आवाज को उठाया। 

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