रेलवे ने ‘डीजल-लोको आधुनिकीकरण वर्क्स’ का नाम बदलकर ‘पटियाला लोकोमोटिव वर्क्स’ किया

रेल मंत्रालय ने “डीजल-लोको आधुनिकीकरण वर्क्स” का नाम बदलकर “पटियाला लोकोमोटिव वर्क्स” कर दिया है।  डीजल-लोको आधुनिकीकरण वर्क्स भारतीय रेलवे की एक उत्पादन इकाई है, जो अब डीजल इंजनों का निर्माण बंद करने के बाद पटियाला लोकोमोटिव वर्क्स है। लोको मॉडर्नाइजेशन वर्क्स इलेक्ट्रिक इंजन और डीजल इलेक्ट्रिक टॉवर कारों के उत्पादन में स्थानांतरित हो गया […]

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February 3, 2022

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रेल मंत्रालय ने “डीजल-लोको आधुनिकीकरण वर्क्स” का नाम बदलकर “पटियाला लोकोमोटिव वर्क्स” कर दिया है।  डीजल-लोको आधुनिकीकरण वर्क्स भारतीय रेलवे की एक उत्पादन इकाई है, जो अब डीजल इंजनों का निर्माण बंद करने के बाद पटियाला लोकोमोटिव वर्क्स है। लोको मॉडर्नाइजेशन वर्क्स इलेक्ट्रिक इंजन और डीजल इलेक्ट्रिक टॉवर कारों के उत्पादन में स्थानांतरित हो गया है। 
रेल अधिकारियों ने बताया कि मंत्रालय ने इसका नाम बदलकर पटियाला लोकोमोटिव वर्क्स (पीएलडब्ल्यू) कर दिया है। ये परिवर्तन तत्काल प्रभाव से लागू कर दिया गया है। ये दूसरी बार है जब लोको आधुनिकीकरण वर्क्स के नाम में बदलाव किया गया है। इससे पहले इसे ‘डीजल कंपोनेंट वर्क्स’ के नाम से जाना जाता था। ये भारत के पंजाब राज्य के पटियाला में स्थित है। इसलिए इस बार इसका नाम बदलकर पटियाला लोकोमोटिव वर्क्स कर दिया गया है। इसकी स्थापना 1981 में भारतीय रेलवे के डीजल इंजनों के सेवा जीवन का विस्तार करने और उनकी उपलब्धता के स्तर को बढ़ाने के लिए की गई थी। इसने डब्ल्यूएपी-7 और डब्ल्यूएजी-9 इंजनों का निर्माण भी  शुरू किया। ये भारतीय रेलवे की पूरी तरह से स्वामित्व वाली उत्पादन इकाई है। भारतीय रेल के डीजल इंजनों के सेवा जीवन का विस्तार करने और उनकी उपलब्धता के स्तर में वृद्धि करने के लिए इसे स्थापित किया गया था।
भारतीय रेल वर्तमान में डीजल और इलेक्ट्रिक इंजनों का इस्तेमाल करता है। भारतीय रेलवे पहले भा प इंजनों का भी  इस्तेमाल करता था, लेकिन अब भा प इंजनों का इस्तेमाल सिर्फ हेरिटेज ट्रेनों के लिए ही किया जाता है। इसलिए पिछले कुछ सालों से पटियाला लोकोमोटिव वर्क्स ने डीजल इंजनों के निर्माण और पुनर्वास गतिविधियों को बंद कर दिया था और जब भारतीय रेलवे ने अपने सभी  मार्गों का पूर्ण विद्युतीकरण शुरू किया तो खुद को एक नई इलेक्ट्रिक लोको निर्माण इकाई में बदल दिया। 
डब्ल्यूएपी-7 लोकोमोटिव भारतीय रेलवे के सबसे शक्तिशाली यात्री इंजन हैं और 140 किमी प्रति घंटे की अधिकतम गति से 24 कोच वाली ट्रेनों को चलाने में सक्षम हैं। इलेक्ट्रिक इंजन अधिक ऊर्जा कुशल होते हैं और गतिज ऊर्जा को विद्युत ऊर्जा में परिवर्तित करके ब्रेक लगाते समय विद्युत ऊर्जा को पुन: उत्पन्न करते हैं और रेलवे नेटवर्क में आसपास के अन्य इलेक्ट्रिक इंजनों को शक्ति प्रदान करने के लिए इसे वापस रेलवे नेटवर्क में फीड करते हैं। हालांकि भारतीय रेलवे के पास ‘चित्तरंजन लोकोमोटिव वर्क्स’ भी  है। यह दुनिया के सबसे बड़े लोकोमोटिव निर्माता कंपनियों में से एक है। इस कंपनी ने डब्ल्यूएपी-7, डब्ल्यूएपी-5,  डब्ल्यूएजी-9, डब्ल्यूएपी-4 जैसे पावरफुल इंजनों का निर्माण किया है।

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